Q (1) P- N सन्धि डायोड का अर्द्धतरंग दिष्टकारी के रूप मे प्रयोग समझाइए तथा इसकी कार्य विधि लिखिए
या
Q (2) अर्द्धतरंग दिष्टकारी के रूप मे P-N संधि डायोड का वर्णन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए -
- परिपथ का नामांकित चित्र
- कार्य विधि
- निवेशी विश्व तथा निर्गत विभव में परिवर्तन आरेख ।
दिष्टकारी - वे युक्तियाँ जो प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा मे बदलती है, दिष्टकारी कहलाती है
यह दो प्रकार की होती है
- अर्द्ध तरंग दिष्टकारी
- पूर्ण तरंग दिष्टकारी
अर्द्ध तरंग दिष्टकारी
परिपूथ का नामांकित चित्र
संरचना -
AC --------> निवेशी प्रत्यावती वोल्टेज स्त्रोत
T --------> ट्रासफार्मर
D1 --------> P- N सन्धि डायोड
R --------> निर्गत वोल्टेज (लोड)
कार्य विधि - जब ट्रासफार्मर T की प्राथमिक कुण्डली के मध्य प्रत्यावती वोल्टेज स्त्रोत लगाया जाता है तो यह प्रेरण द्वारा ट्रासफार्मर की द्वितीयक कुण्डली मे भी प्रेरित हो जाता है।
माना प्रत्यावर्ती वोल्टेज के प्रथम अर्द्धचक्र सिरा A धनात्मक विभव पर तथा सिरा B ऋणात्मक विभव पर होता है। तो इस स्थिति मे डायोड़ अग्र अभिनति में होता है। अत: डायोड़ मे से होकर धारा प्रवाहित होती है । तथा लोड R मे मान्य धारा प्राप्त होती है
तथा द्वितीय अर्द्धचक्र मे सिरा A ऋणात्मक विभव पर तथा सिरा B धनात्मक विभव पर होता है। तो इस स्थिति मे डायोड पश्च अभिनति में होती है । अतः लोड R मे कोई मान्य धारा प्राप्त नहीं होती है।
P-N, सन्धि डायोड के इस रूप को अर्द्धतरंग दिष्टकारी कहते है।
निवेशी तथा निर्गत वोल्टेज के मध्य आरेख ।
पूर्ण तरंग दिष्टकारी को देखने के लिए click करे यहाँ
Thank you so much 🙏 by Shafhimo